भारत में जन्मे एक मठवासी संत एक युवा सन्यासी के रूप में भारतीय संस्कृति की सुगंध दूसरे देशो में बिखेरने वाले ऐसे महापुरूष थे स्वामी विवेकानंद “उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति पूर्व मत रुको, स्वामी विवेकानंद का यह क्रांतिवाक्य आज भी युवाजन को प्रेरित करता है | सम्पूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति का महत्व बताने में उनका योगदान बड़ा रहा है |
स्वामी विवेकानंद का जन्म १२ जनवरी १८६३ को कलकत्ता में हुवा इनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाय कोर्ट में एक वकील थे | इनकी माता श्रीमती भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारो की महिला थी | स्वामी विवेकानंद के चरित्र में जो भी महान है | वह उनकी विचारशील माता की शिक्षा का परिणाम है | एक ग्रंथालय से रोज किताबे लाते और उन्हें वापस कर आते, एक दिन ग्रंथलाय के कर्मचारी ने पूछ लिया “तुम किताबे पड़ने के लिए ले जाते हो या देखने के लिए”, स्वामी विवेकानंदजी बोले “पढ़ने के लिए, आप कुछ भी उन किताबो में से पूछ सकते है”, | उस कर्मचारी ने किताब का एक पेज खोला और उस पेज का नंबर पर क्या लिखा है यह पूछा | स्वामी विवेकानंद ने बिना कुछ देखे उस पेज का सारा विवरण बता दिया |
इससे उनके स्मरण शक्ति का पता चलता है | स्वामी विवेकानंद की बुद्धि बचपन से काफी त्रीव थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी | इस हेतु वे पहले ब्रह्म समाज में गए | परन्तु वहा उनके चित्त को संतोष नहीं हुवा | वह वेदांत और योग को पाचात्य संस्कृति में प्रचलित करने के लिए अपना महत्वपृर्ण योगदान देना चाहते थे | रामकृष्ण परमहंस की स्वामी विवेकानंद तर्क करने की उद्देश्य से उनके पास गए | परंतु उनके विचारो से प्रभावित होकर उन्हें गुरु मान लिया | परमहंस की कृपा से उन्हें आत्मसाक्षात्कार हुवा | स्वामी विवेकानंद परमहंस के शिष्यों में सर्वपरि थे | २५ वर्ष की उम्र में नारंगी कपडे धारण कर सन्यास ले लिया | और विश्वभ्रमण पर निकल पड़े |
१८९३ में वह शिखागो विश्व धर्म परिषद् में भारत के प्रतिनिधि बनकर गए परंतु उस समय यूरोप में भारतीयों को हिन् दॄष्टि से देखते थे | लेकिन उगते सूरज को कौन रोक पाया है | वहा लोगो के विरोध के बावजूद एक प्रोफ़ेसर के प्रयास से स्वामीजी को बोलने का अवसर मिला | स्वामीजीने बहनो और भाइयो कहकर संभोदित किया | स्वामीजी के मुख से यह शब्द सुनकर श्रोताओ ने तालियों से उनका स्वागत किया | श्रोता उनको मंत्रमुग्ध सुनते रहे और निर्धारित समय कब बित गया पता ही न चला और २० मिनट से अधिक बोले | उन्होने कहा की जब हम किसी व्यक्ति या वस्तु को उनकी आत्मा से पृथक रखकर प्रेम करते है, तब हमें कष्ट भोगना पड़ता है | अतह हमारी कोशिश होनी चाहिए की हम व्यक्ति को आत्मा से जोड़कर देखे या उसे आत्मस्वरूप मानकर चले तो फिर हम हर एक स्थिति में शोक, कष्ट, रोग, द्वेष से निर्विकार रहेंगे |
स्वामी विवेकानंद ४ वर्ष तक अमेरिका के विभिन्न शहरों में भारतीय अध्यात्म का प्रचार प्रसार करते रहे | वर्ष १८८७ में वे स्वदेश लौटकर आये | घर लौटकर उन्होंने देशवासियो का आवाहन किया और कहा “नया भारत निकल पड़े कारखाने से, हाट से, बाजार से, निकल पड़े झाड़ियों से, जंगलो से, पहाड़ो से, इस प्रकार उन्होने आजादी के लड़ाई के लिए लोगो का आवाहन किया | उसके बाद उनोन्हे देश विदेश की व्यापक यात्रा कि, रामकृष्ण मिशन की स्थापना की और धार्मिक वाद, रूढिया, परंपरा, पुरोहितवाद से बचने की लोगो को सलाह दी | अपने विचार क्रांति से उन्होने लोगो और समाज को जगाने का काम किया | रविंद्रनाथ टागोर ने उनके बारे में कहा “यदि आप भारत को जानना चाहते है तो विवेकानंद को पढ़िये, उनमे आप सबकुछ सकारात्मक पाएंगे, नकारात्मक खुछ भी नहीं” |
रोमा रोला ने उनके बारे कहा “उनका दूतीय होने की कल्पना करना असंभव है, और वे जहा भी गए सर्वप्रथम ही रहे |
४ जुलाई १९०२ को वे ३९ वर्ष के अल्पआयु में स्वामी विवेकानंद ब्रमलीन हो गए | उनके क्रांतिकारी विचार आज भी जीवित है और लोगो को प्रेरणा देते है |